आखिर त सबून अपणा गोंउ जाण -किले होंदू पित्र दोष ?

  • आखिर त सबून अपड़ा गौंउ जाण 
    पलायन जरुरी च या मजबूरी च ।
    पित्र दोष नी होण त क्य होणअपणी जन्म भूमि मा  ओण वाला समै पर अपणा गोंउ मा हम किराया का कमरों पर रैला । मालिक नेपाली,मुसलमान ,सरदार ,या चीन कू कब्जा होलू ।
  • दीपक कैन्तुरा( रंत- रैबार )  सोशल  विकास – गढवाली मा एक कहावत च 
    आंगियो जोला फांगियो जोला 
    औंण त आखिर मा ग्वळ पर च 
    या कहावत आज हम लोगों पर फिट बैठणी च किलै की भले आज हम अपड़ा गौंउ मुल्क छोडिक तें रोजगार का खातिर अर अपणा बच्चों की पढे लिखे का वास्ता पहाड़ सी पलायन करणा च । चला क्वी बात नी की हम अपणी रोजी रोटी अर बच्चों का भविष्य का खातिर पलायन करणा च मजबूरी पर हमारी या क्या मजबूरी च कि हम अपणा पित्रों की बणाई डोखरी फुंगणियों ते बैचिक अर जू हमारा पूर्वजोंन न एक एक ढुगियों अर छापलों से जु हमुतें रेण कु आश्रु बणाई जैं धरती मा हमुन पैलि कदम रखी आज वां जन्म भूमि खण्डवार च आज भले हम कै भी कामयाबी का शिखर पर च या आज हम देश विदेश च त आज हम अपणा पित्रों की कृपा सी च । पर आज हम अपणा ऊं पूर्वजों तें बिसरीगिन जैका कारण आज हम पर पित्र दोष च ।
    पित्र दोष क्या च – आज जब हमारी नई पीड़ी तें यु पता नी हमारा दादा दादी और हमारु गौंउ कुच अर जु तोंन दिन रात मेहनत करिक तें हमुक तें मुण्ड डकोण क तें आश्ररु बणे कति पसीना बगै होली कति ठोकरी लगी होली कख बटिन चिरान ल्याय होला अर भूखा तीसा रै होला पर आज हमुन जरा भी ऊंकू ख्याल मन मा नी आई और डोखरी फोंगडी बेचिक तें प्रदेशी बणिगिन त तुम्ही बोला ऊंकी आकत्मा क्या बोली ।
    उदाहरण- यदि हम दिन रात अपणा काम पर दिन रात मेहनत करदन न बरखा देखदन न घाम माना हमुन पाँच 500 की ध्याडी करि अर ठेकदार न 300 दिनी त 200 का बाना हमारु शरीर क्या बोलदू हम मार पीठ लडै झगडा करण क तें तैयार ह्वे जांदन जब हम 200 का बाना हमारी आत्मा यनि भटगदी त तोंकी जिन्दगी भर की खून पसीना सी बणाई डोखरी फोंगडी हमुन छोडली त ऊंकी आत्मा क्या बोलदी होली या एक सोचण वाली बात च ।
    जब तक उत्तराखण्ड राज्य नी बणि थो तब लोग बोलदा था की अलाणी मौ दिल्ली रंदी फलाणी मौ बम्ई रेंदी पर जब सी उत्तराखण्ड बणि तब सी जादा यु सुण्ये जांदू की हम देहरादूण वाला च । आज लोग डोखरी फुंगणी बेचिक तें देहरादूण मा 100 गज मा मकान बणे देंदा ऊं अफु तें धन्य धान्य समझणा च पर ओण वालू वक्त बडू ओखु ओणु च । किले की दिल्ली मुम्ई मा जौंउ लोगों का मकान छा सी आज धीरे धीरे बेचिक देहरादूण की तरफ आणा च तब धीरे ऋषिकेश आणा च किलै की दिल्ली मा जख लोग बडा रोब सी रेंदा था पर आज न हवा साफ पाणी । जब सांस ही गंदगी मा ल्ये जाली त हमारी जिन्दगी क्या होली जब स्वास्थय नी त रोजगार कू अर पढै लिखे कू क्य कन । 
    अपणु न छोडी- बिराणोंन सेंकि- आज जू भूमि तें हम कोडी कू भाव नी समझणा च औण वाला कुछ सालों मा हमुन जै माटा मा जन्म लिनी वीं माटी मा किराया का कमरों पर रेण पडलू और मालिक पंजाबी मुशलमान और नेपाली होला या चाईना वालों कू राज होलु ।
    हमुन विकाई तोंन कमाई- आज जू डोखरी पुंगडी हमुन नेपालियों मा विकाई आज ऊंन वै माटा मा लाखों की भुजी बिकाणा च जैविक अर ताजी अर हम फ्रिज कू बासी तिबासी खाणा च न नेपाली न माटू ल्येन बीज औंन अपणी लगन मेहनत सी काम कैरी अर हमारी माटी मा लाखों कमाणा च ।
    सेवानिवृत होणा का बाद गोंउ मा जाउ – आज जथगा भी लोग च ऊं सेवा निवृत होणा का बाद दुबारा चार पाँच हजार की नोकरी खुजाणा च वैसी बडिया ऊंच की जिन्दगी भर कमाई पर पुरु नी ह्वे कम सी कम कुछ साल अपणी माटी मा रावा और लोगों तें भी समझावा अपणू योगदान समाज का वास्ता दिनियों चेंदू ।
    आखिर त जाण गौँउ च – आज हम चाहिए देश छन विदेश च हम कतिक भी सम्पन च पर आखिर मा सबुन गौंउ मा जाण येकू उदाहरण देश का सर्वोच पद पर बैठया पूर्व राष्ट्रपति च कार्यकाल समाप्त होणा का बाद सब अपणा अपणा राज्य मा च सिर्फ ज्ञानी जैल सिंह जी का अलो त तुम अर हम नी जै सकदन ।
    या एक चिन्तन करन वाली बात च की हम समै रेंदा पैलि जागदन । जु लोग धीरे धीरे समणा च की जाण त अपणा कोणेठा पर च सी अब धीरे धीरे कांडा कंडाली काटिक तें उज्डया खण्डवारों तें सलोणा च अर गोंउ जाणा च पर जु लोग यीं धोंस मा च की क्या कन पहाड़ मा सी यु सोचि ल्या की दिल्ली देहरादूण की कोठी बेचिक पित्रों की भूमि मा किराया पर रण येकी तैयारी अभी सी करील्या

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