जानिए, माता अनुसुइया की कहानी

माता अनुसूया का यह मंदिर उत्तराखंड के चमोली जिले में मंडल से लगभग छह किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। मंदिर के चारों ओर बाज के घने जंगल हैं। इस मंदिर में हर साल दत्तात्रेय जयंती मनाई जाती है। इसमें हजारों की संख्या में श्रद्धालु शामिल होते हैं।  इस अवसर पर यहां नौदी मेले का भी आयोजन होता है। इसमें लोग अपने-अपने गांवों से देव डोलियों को लेकर पहुंचते हैं। इस मंदिर से कुछ ही मील की दूरी पर अत्रि मुनि का आश्रम है। यहां देवडोलियों की परिक्रमा के साथ इस मेले का समापन होता है।

प्राचीन काल में यहां देवी अनुसूया का छोटा सा मंदिर था। सत्रहवीं सदी में कत्यूरी राजाओं ने इस स्थान पर अनुसूया देवी के भव्य मंदिर का निर्माण करवाया। अठारहवीं सदी में आए विनाशकारी भूकंप से यह मंदिर ध्वस्त हो गया। इसके बाद संत ऐत्वारगिरी महाराज ने ग्रामीणों की मदद से इस मंदिर का पुन: निर्माण करवाया।

मान्यता है कि इसी स्थान पर माता अनुसूया ने अपने तप के बल पर ब्रह्मा, विष्णु और शंकर को शिशु बनाकर पालने में खेलने पर मजबूर कर दिया था। बाद में काफी तपस्या के बाद त्रिदेवों को पुन: उनका रूप प्रदान किया और फिर यहीं तीन मुखवाले दत्तात्रेय का जन्म हुआ। माता अनुसूया के इस मंदिर के पास ही दत्तात्रेय मंदिर की स्थापना भी की गई है।

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