ये 444 दवाओं पर उत्तराखण्ड उच्च न्यालय ने इसलिऐ लगाई रोक

सयां: बुखार की पैरासिटामौल, सिट्राजिन, टेराफिनाडीन, डीकोल्ड टोटल, सेराडॉन, फिंसाडीन, डोवर्स पावडर, दर्द की डाईक्लोफेन्स, पेरासिटामोल डोवोर्स टेबलेट व कोम्बिफ्लेम आदि।

 

नैनीताल, 13 अगस्त 2018। उत्तराखण्ड उच्च न्यायालय ने प्रदेश में 434 दवाओं की बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया है। यह प्रतिबंध राज्य के युवाओ का नशे की गर्त में जाने के खिलाफ दायर रामनगर नैनीताल निवासी श्वेता मासीवाल की जनहित याचिका में सुनवाई करते हुए कार्यवाहक मुख्य न्यायधीश राजीव शर्मा व न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी की अदालत ने दिये। खंडपीठ ने किशोर न्याय अधिनियम की धारा 77 जे जे में विस्तार करते हुए 18 साल से कम उम्र के बच्चों को प्रतिबंधित दवाइयां, मादक पदार्थ और नशा होने की आशंका वाली किसी भी दवा-चीज की बिक्री पर भी रोक लगा दी है।

खंडपीठ ने राज्य सरकार को केंद्रीय औषधि नियंत्रक बोर्ड द्वारा प्रतिबंधित की गयी सभी 434 दवाओं की बिक्री पर पूर्ण रूप से रोक लगा दी है। पीठ ने कहा कि जिस किसी मेडिकल स्टोर में ये दवाईया उपलब्ध हैं उनको पुलिस की मदद से या तो नष्ट किया जाए, अथवा इन्हें इनकी कम्पनी को वापस किया जाए। इसके अलावा खंडपीठ ने राज्य में नशे को रोकने के लिए सभी शिक्षण संस्थानों, निजी संस्थानों और अन्य सार्वजनिक स्थानों पर ड्रग्स कंट्रोल क्लब खोलने के आदेश भी दिए हैं। इन क्लबों के अध्यक्ष उच्च शिक्षा निदेशक और नोडल अधिकारी विद्यालयी शिक्षा निदेशक होंगे। खण्डपीठ ने यह भी निर्देश दिए हैं कि जेलों से कैदियों को लाते व ले जाते वक्त नारकोटिक्स की जांच की जाये। राज्य व जनपदांे की सीमाओं पर ड्रग्स की जांच करने के लिए सरकार 3 सप्ताह में विशेष टीम गठित करे। प्रदेश के प्रत्येक जिले में नशा मुक्ति केंद्र खोले जाएं। राज्य सरकार को चार सप्ताह के भीतर ड्रग्स नारकोटिक्स स्क्वाड का गठन करने को भी कहा गया है। मामले के अनुसार याचिकर्ता ने जनहित याचिका दायर कर कहा है कि प्रदेश के युवा वर्ग दिन-प्रतिदिन नशे की गिरफ्त में डूब रहे हैं, लिहाजा नशे के कारोबारियों पर रोक लगाई जाये। उल्लेखनीय है कि पूर्व में तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश केएम जोसफ ने भी इस मामले में टिप्पणी करते हुए कहा था कि प्रदेश का युवा वर्ग नशे की गर्त में डूब रहा है, तथा प्रदेश सरकार और पुलिस नशा रोकने में नाकाम हो रही है। पूर्व में इस मामले में एसएसपी एसटीएफ नारकोटिक्स एंड ड्रग्स कण्ट्रोल और क्षेत्रीय निदेशक कोर्ट में पेश हुए थे उन्होंने नशे को रोकने के लिए स्टाफ की कमी का हवाला दिया था, तथा माना था कि जो भी थोडा बहुत इसको रोकने के लिए केवल इलेक्ट्रानिक उपकरणों और एसएसबी की मदद से ही कार्रवाई की जाती है। बताया था कि उत्तराखंड में नशे का कारोबार बाहर के राज्यो से प्रमुख कोबरा गैंग के माध्यम से होता है। इस पर खंडपीठ ने इस मामले को महत्वपूर्ण मानते हुए पूर्व में ही राज्य के सभी 27 विश्वविद्यालयो, सभी एसएसपी और सभी जिला अधिकारियों को पक्षकार बनवाया

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