शुभ हो गयी औली-देखिए पूरी खबर-वेद विलास उनियाल के जरिए

औली अपने बेहद सुंदर नजारों और हिम क्रीडा  केंद्र के तौर पर दुनिया भर में मशहूर है। लेकिन इन दिनों औली कुछ अलग कारणों से सुर्खियों में है। यहां के मनोरम इलाकों में  गुप्ता बंधुओं की शादी का आयोजन को लेकर जो बातें फिजां में दौडती रहीं उसे लेकर लोग रोमांचित हुए।  उन्हें यह अजूबा सा लग रह है कि कोई शादी 200 करोड की हो सकती है। क्या ऐसी भी शादी हो सकती है कि जिसमें पांच करोड के फूल विदेश से मंगाए जा सकते हैं।  पिछले कुछ साल से स्किंइंग की अंतराष्ट्रीय स्पर्धा के लिए लालायित औली में ऐसे आयोजन ने सबका ध्यान खींचा है।

कहा गया  कि यह हाईप्रोफाइल शादी 200 करोड की है। शादी से पहले चांदी के निमंत्रण कार्ड ही इस आयोजन की भव्यता को बता रहे थे। शादी में क्या कुछ नहीं था पांच करोड तो फूल ही स्विटंजरलैंड से मंगाए गए । औली ने अपने हिम क्रीडा के चलते यहां कैसी कैसी सेलिब्रिटी देखी होंगी लेकिन एक साथ विभिन्न क्षेत्रों की सेलिब्रिटियों को देख पाना एक कौतूहल रोमांच अलग अनुभव होता है।  

 हिमालय क्षेत्र में ऐसी शादी किसी कल्पना लोक से उतरी चित्रकथा की तरह लगती है। ऐसे में  जडता से बंधे या भव्यता को दिखावा का द्योतक मानने वाले इसे अलग तरह से देखने लगते हैं। वह कोशिश करते हैं कि इस तरह के आयोजनो को अपनी कसौटी पर देखे।  बेशक जीवन में सादगी का अपना महत्व है। लेकिन इसी जीवन में ऐसे आयोजन को जब आर्थिक व्यवहार से और भविष्य के लिए बेहतर योजनाओ के साथ देखने की कोशिश करते हैं तो हमें उसकी सार्थकता महसूस होती है। बहुत आसान होता है कि ऐसे आयोजनों को भव्यता दिखावा या अनावश्यक खर्चे के तौर पर  उसे अगंभीर उपक्रम मान लेना। लेकिन उत्तराखंड  विकास के लिए जो खाका तैयार कर रहा है उसमें पर्यटन महज पहाडों, मंदिर देव स्थलों को दिखाने तक सीमित नहीं है। बल्कि वह साहसिक पर्यटन,  होम स्टे ,योग ध्यान से होते हुए डेस्टिनेशन में वेडिंग टूरिज्म को प्रोत्साहित करने को लेकर भी है।

  अमूमन राजसी तडक भडक वाली या भव्य शादियां जब भी हुई है, उसे लेकर कुछ आलोचना के स्वर भी उठते हैं।  जब भी ऐसी शादियां भव्यता और पूरे रसूख के साथ होती हैं तो उसे लेकर कुछ लोगों के मन में उठता है कि शादी के आयोजन में इस तरह का पैसा पानी में क्यों बहा। तब यह सुझाव भी दिया जाता है कि इतने धन से कुछ और काम किया जा सकता था। मसलन अस्पताल स्कूल खोला जा सकता था। लेकिन हम इसके दूसरे प्रभावों को नजरअंदाज कर देते हैं।

 जिस एनआरआई गुप्ता बंधुओं ने विश्व प्रसिद्ध हिम क्रीडा केंद्र औली को वैडिंग डेस्टिनेशन के लिए चुना वो मजे ही मजे में उत्तराखंड को कितना बडा उपहार दे गए हम यह नहीं सोच पाते। बेशक इस परिवार से अपेक्षा की जा सकती है कि वह उत्तराखंड सहित देश के तमाम क्षेत्रों में अपना सहयोग करें लेकिन फिलहाल जिस तरह उन्होंने परिवार के निजी आयोजन को एक बडे दायरे में लाकर चर्चा का विषय बनाया उसका महत्व है। जिस तरह इस अजय गुप्ता के बेटे सूर्यकांत और  अतुल गुप्ता के बेटे शंशाक की शादी की चर्चा देश के ओर छोर तक पहुंची है उससे निश्चित तौर पर लोगों का ध्यान इस ओर खिंचेगा। बेशक भव्यता के इस आकार की शादियां कभी कभार होती है लेकिन आम परिवारों के जोडे भी भविष्य में यहां शादियों के बंधन में बधंने आ सकते हैं। और कई लोगों को घूमने फिरने के लिए यह जगह रोमांचक लग सकती है। खासकर यह देखते हुए कि उत्तराखंड को वेडिंग टूरिज्म के तौर पर उभारने की कोशिशें हो रही है। तब ऐसे आयोजन इस उद्देश्य को फलीभूल करने में निश्चित तौर पर मदद करेंगे।

   तमिलनाडू में जयललिता ने पारिवारिक शादी आयोजन को जब शाही अंदाज दिया, नगर द्वार सजे   शहर की रौनक बढी और शादी का ऐश्वर्य की बातें पत्र पत्रिकाओं में छपी तो बेशक कुछ दिन उसे लेकर गपशप होती रही चटकारे लिए जाते रहे । इसी तरह  भव्य राजसी शादियो के कई और किस्से सुनने को मिलते हैं। जहां दौलत पानी की तरह बहाई गई। यहां औली की इस शादी के प्रतीक कुछ और हैं। दरअसल गुप्ता बंधु  शादी का आयोजन  तिरजुगनारायण में करना चाहते थे। लेकिन जगह की कमी की वजह से उन्होंने औली को स्थल चुना । परिवार ने यही तय किया कि बाद में  तिरजुगनारायण में जाकर पूजा अर्चना की जाए।   

शिव के इस क्षेत्र में वर वधु आशीर्वाद लेने आया करते हैं। कहा जाता है कि इस स्थान पर शिव पार्वती का विवाह संपन्न हुआ था। यहां आकर कई जोडे विवाह बंधन में बंधते हैं। गुप्ता बंधुओ ने उसी परंपरा पर औली में विवाह आयोजन और तिरजुग नारायण में पूजा संपन्न करने का निर्णय लिया। शादी की भव्य तैयारियों में पांच सितारा होटल नुमा टेंट कालोनी स्थापित की गई। बालीवुड स्टार या स्थानीय लोगों को पहाडी व्यंजन की चर्चाएं कुछ समय तक लोगों के बीच रहेंगे लेकिन आने वाले समय में अगर पहाडों के पर्यटन के लिए नया मौड आया तो ऐसे आयोजन हमेशा याद रहेंगे। कहीं न कहीं अपने ढंग की शुरुआत है। इससे हम काफी सीख समझ पाएंगे कि हमारी दिशा किस तरह की हो।

  एक समय कश्मीर की सुंदरता को जानने समझने के बाद भी लोग इस बात से अनभिज्ञ थे कि फिल्म के पर्दे पर उसका फिल्मांकन इतनी खूबसूरती से हो सकता है। राजकपूर ने सबसे पहले बरसात में कश्मीर को पर्दे पर उतारा था। सके बाद देश दुनिया कश्मीर के नजारों पर मुग्ध हो गई।  धीरे धीरे कश्मीर पर और फिल्में बनी  रंगीन फिल्मों ने  प्रकृति के नजारों को और दिलकश बनाया।  कहने का अर्थ यही कि कहीं न कहीं एक शुरूआत तो करनी ही होती है।  उत्तराखड को उन लोगों का आभार मानना चाहिए जो किसी न किसी सार्थक प्रयोजन पर  अपने आयोजनो के लिए   इस भूमि पर आ रहे हैं।  

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