आखिर क्यों फैलाई जारही मुख्यमंत्री बदलने की अफवाह-देखिए पूरी खबर

आखिर क्यों फैलाई जारही मुख्यमंत्री बदलने की अफवाह

सूत्रों की माने तो खबर ये है की कुछ दिन पहले एक बड़े मंत्री के साथ हरियाणा और दिल्ली के शराब माफियाओं और खनन माफियाओं की मीटिंग हुई जिसमें बड़े लेन देन की बातें सामने आरही है उसके तुरंत बाद जैसे ही मुख्यमंत्री ने अपने आवास पर सभी विधायक  व अधिकारियो की मीटिंग व भोज रखा और उसमें सभी अधिकारियों को सख्त निर्देश दिये  कि सभी अधिकारियों को विधायकों और कार्यकर्ताओं के लिए उपलब्ध रहना होगा। किसी भी तरह की लापरवाही बर्दास्त नही होगी उसके बाद से ही हडकंप मच गया उसी दिन से मुख्यमंत्री को बदलने की अफवाहों ने जौर पकड़ लिया।

उसके अगले दिन ही जैसे ही मुख्यमंत्री हरिद्वार कुंभ कार्यों के निरीक्षण के लिए गये और अखाड़ा परिषद के द्वारा सीएम के इस कदम की जमकर तारिफ की गयी तो हलचल होनी  तो स्वाभाविक थी।

आपको बता दें जैसे ही सूबे में कोई बड़ी नीति आनी होती है तो अफवाहों का बाजार गर्म हो जाता है। जौ केवल उस नीति के अंदर माफियाओं की मनमर्जी के हिसाब से बिन्दू रखे जांए केवल ये दबाव बनाने के लिए होता है जिसके तहत कुछ माफिया फर्जी पत्रकारों और बड़े दलालों का सहारा लेते हैं और उसमें अपने आकाओं को शामिल करते हैं जिनमें मुख्यमंत्री बनने की लालशायें जौर मार रही होती हैं।और यही मंत्री फिर उन माफियाओं के और फर्जी पत्रकारों के सहारे मुख्यमंत्री बदलने जैसे अफवाहों के बाजार को गर्म कराते हैं। और  दबाव की राजनीति से अपने काम निकालते हैं।

 सूत्रों की माने तौ  कि इस वर्ष आबकारी नीति का अग्रिम चंद दिनों में आने की संभावना है। और इस बार यह विभाग मुख्यमंत्री जी के पास है।और सभको पता है की पिछले वर्ष आबकारी नीति में कोई परिवर्तन नहीं हुआ था। केवल पुरानी नीति का नवनीकरण हुआ था। जिससे शराब माफियाओं की चांदी ही चांदी होगयी थी। लेकिन इस बार नीति को बदलने की चर्चा आम है और ये हर कोई जानता है की उत्तराखण्ड में शराब और खनन माफियाओं का वर्चस्व उत्तराखण्ड में कितना बड़ा है। और इस बार तो दोनों विभाग मुख्यमंत्री के पास हैं।

गौरतलब हो की खनन माफियाओं की स्थिति कितनी खस्ताहाल है ये आज उत्तराखण्ड में हर कोई जानता है कितनी ही बार कितने बड़े बड़े दिग्जों ने खनन में ढ़ील दिलवाने की कोशिश की लेकिन मुख्यमंत्री टस से मस भी नहीं हुए हैं।

यहां शराब माफियाओं और खनन माफियाओं की जब-जब जुगलबंदी हुई है तब तब यहां अस्थिरताए आई हैं और उत्तराखण्ड पिछडता गया है।एक समय था जब खनन माफियाओं और शराब माफियाओं की तुती सचिवालय से लेकर सीएम आवास तक होती थी। उनका बोल बाला हर और रहता था लेकिन विगत तीन वर्षों में उनकी कमर लगभग टूट गयी है। मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत के उपर दबाव बनाने की राजनीति विफल हुई है। ये जरुर है कि की समय समय पर कुछ बड़े आकाओ के द्वारा दिल्ली से लेकर देहरादून तक अफवाहों फैलाकर अपनी दुकान जरुर चलानें की कोशिश की है।

अब जैसे आबकारी विभाग मुख्यमंत्री के पास आया वहां उनहोंने सख्ती दिखाई जिससे कुछ घोटाले उजागर हुए और  सूत्रों की माने तौ कुछ बड़े घोटाले खुल सकते हैं। वैसे ही सब माफियाओं की नींदें उड़ गयी और उनहोंने अपने आकाओं के साथ सूबे के बड़े मंत्री का दरवाजा खटखटाया और वहीं पर खनन माफियाओं और शराब माफियाओं की मीटिंग हुई और तब से ही मुख्यमंत्री के बदलने की अफवाहों ने जौर पकड़ लिया और एसा लगता है की ये सब आबकारी नीति में माफियाओं के हिसाब से बदलाव कैसे हो का ही एक हिस्सा लगता है।

मुख्यमंत्री बदलने की चर्चा चलना उत्तराखण्ड में आम बात है लेकिन कोई ये नही सोचता है की इससे  उत्तराखण्ड का विकास कितना प्रभावित होता है। और जो जनहित के कार्य होते हैं वह रुक जाते हैं अफवाहें कुछ भी हों लेकिन इस बार एसा लगता है की खनन माफियाओं और  शराब माफियाओं का भागना तय है और उत्तराखण्ड के आम आदमी को मुख्यमंत्री  त्रिवेन्द्र सिंह रावत से ये उम्मीद है की अबकी बार आबकारी विभाग से भी माफियाओं का गठजोड़ दूर हो जायेगा।

 

 

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