वीर तिमुण्डया एक अदृभूत मेला….जानकर कर हैरत में पड़ जायेगें आप
जोशीमठ(चमोली)-:
हर साल वीर तिमुण्डया का मेला बदरीनाथ धाम के कपाट खुलने के ठीक 1 या 2 हफ्ते पूर्व शनिवार और मंगलवार को होता है।जिसमें सुखद और सुगम चारधाम यात्रा की कामना की जाती है।
मेले के दिन नृसिंह मंदिर में देव पूजाई समिति के कार्यालय से देव पूजाई समिति के पदाधिकारियो और पस्वाओ को दोल दमाऊ के साथ नृसिंह मंदिर प्रांगड़ ले ले जाया जाता है।फिर नृसिंह मंदिर प्रांगड़ से माँ नवदुर्गा के यहाँ से माँ नवदुर्गा का आवाम लाठ लाया जाता है।जिस पर माँ नवदुर्गा की शक्ति रहती है उसको नृसिंह मंदिर प्रांगड़ में लाया जाता है। नवदुर्गा, भुवनेश्वरी, चण्डिका ,धाणी देवता और तिमुण्डया का पस्वा उस माँ नवदुर्गा का आवाम पकड़कर नाचते है।सभी देवी देवता गंगाजल से स्नान करते है।फिर तिमुण्डया वीर अवतरित होता है।और फिर शुरू होता है तिमुण्डया का रौद्र रूप।
तिमुण्डया का वीर 1 बकरी,40 किलो का कच्चा चावल,10 किलो गुड़,2 गड़ा पानी सबके सामने पीता है।दर्शक यह देख दंग रह जाते है।और इस मेले को देखने के लिये हर साल हजारों श्रदालु आते है।भारी भीड़ को देखते हुए ज्यादातर इस मेले का कार्यक्रम गुप्त ही रखा जाता है।
ये है तिमुण्डया की मांन्यता
माना जाता है तिमुण्डया तीन सिर वाला वीर था।और एक सिर से दिशा का अवलोकन, एकसिर से मांस खाना और एक सिर से वेदों का अध्ययन करता था ह्यूना के जगलों में इस राक्षस ने बड़ा आतंक मचा रखा था।और हर दिन मनुष्य को खाता था।एक दिन माँ दुर्गा देवयात्रा पर थी।गॉव वाले माँ के स्वागत के लिये नहीं आये।पूछने पर पता चला की लोग तिमुण्डया राक्षस के डर से घर से बाहर नहीं निकल रहे है।और हर दिन एक मनुष्य को खाता है।हर दिन एक मनुष्य नरबलि के लिये जाता है।माँ दुर्गा के कहने पर उस दिन कोई नहीं जाता है।तो क्रोधित तिमुण्डया गर्जना करते हुये गॉव में पहुँचता है।माँ नवदुर्गा और तिमुण्डया का भयंकर युद्ध होता है।माँ नवदुर्गा उसके तीन में से दो सर काट देती है।एक सिर कटकर सेलंग के आसपास गिरता है उसे पटपटवा वीर और एक उर्गम के पास हिस्वा राक्षस कहते है।और ज्यो ही नवदुर्गा माँ तीसरा सिर काटने लगती है तो तिमुण्डया राक्षस माँ का शरणागत हो जाता है।और माँ उसकी वीरता से बहुत प्रसन्न होती है।और उसे अपना वीर बना देती है।और आदेश देती है।आज से वो मनुष्य का भक्षण नहीं करेगा ।साल में एक बार उसे एक पशु बकरी की बलि और अन्य खाना दिया जायेगा ।तब से ये परम्परा चली आ रही है।
धर्माधिकारी बदरीनाथ धाम और देव पूजाई समिति अध्यक्ष भुवन चन्द्र उनियाल का कहना है कि तिमुण्डया तीन सिर वाला वीर था।और यह मनुष्य को खाता था।और माँ के शरणागत होने पर साल में एकबार एक पशु बलि, बकरी,50 किलो चावल,10 किलो गुड़ 2 गड़े पानी दिया जाता है।और तिमुण्डया का पश्वा सबके सामने खाता है।यह परम्परा सदियों से चली आ रही है।चारधाम यात्रा1,सरल, सुगम सुखद यात्रा के लिये यह आयोजन होता है।
स्रोत-शशांक राणा, राजपूत