मायानगरी में चमकते उत्तराखण्ड के दो नन्हें सितारे।
मायानगरी में चमकते उत्तराखण्ड के दो नन्हें सितारे।
दीपक कैन्तुरा(सोशल विकास उप-सम्पादक)
- पिथोरागढ़ के दो नन्हे सितारे मायानगरी में अपनी चमक बिखेर रहे हैं।
- 12 साल का राहुल और उसकी बहन पूजा बरना विभिन्न मंचों पर अपनी प्रतिभा की चमक निखार रहे हैं।
प्रतिभा किसी उम्र की मोहताज नही किसी न किसी मनुष्य में कोई न
कोई प्रतिभा छिपी होती है बस जरुरत होती उसे मंच पर लाने की प्रतिभा को मंच प्रधान करने की जब प्रतिभा को उसका सही दिशा मिल जाती तो प्रतिभा इंसान को बुलंदियों के शिखर पर ले जाती है , इंसान की कामयाबी और उसकी प्रतिभा का आगाज बचपन से होने लगजाता , की ये इंसान क्या करेगा कितने आगे अपनी प्रतिभा के दम पर जाएगा।माँ पिता को तब सबसे बडी खुशी होती है जब उनका बेटा माँ बाप का नाम रोशन कर रहा होगा ।बचपन से राहूल को संगीत सुनने वो गाने में काफी रुची रही राहूल बचपन में टीवी रेडियों व होम थियटर पर संगीत सुनता तो वह उसी धुन में गुनगुनाने लग जाता था । राहूल की बचपन से संगीत के प्रति रुची को देखते हुए राहूल के पिता भुवन बरना माता हेमा बरना बेटे की संगीत की रुची को देखर भांप गये थे की राहूल के अंदर कोई गायक बसा है , राहूल ने धीरे धीरे अपनी गायकी को आगे बडाया । 8 साल की अल्प आयु से मुबई के मंचों से हिन्दी गीत गाकर राहुल ने संगीत जगत में अपना कदम रखा । राहुल का मूल गांव कुमाँऊं में पिथोरागढ है , राहुल का जन्म भले मायानगरी मुबई में हुआ होगा , पर राहुल को अपनी थाती अपनी माटी से गहरा लगाव है राहुल के पिता कहते की राहुल बचपन से उत्तराखण्डी प्रसिद्ध गायकों के गीत सुनता था और गुनगुनाता था , उत्तराखण्ड की बोली भाषा और संस्कृति के प्रति लगाव रखने वाले पारिवारिक संस्कारों से प्रेरित राहुल ने उत्तराखण्डी गीत गायन प्रारंभ किया ।
राहूल ने मन में ठान लिया की गायन से उत्तराखण्डी संगीत जगत में नई ईबारत लिखनी। 12 साल के राहुल 7साल की अल्प आयु से हिन्दुस्तानी शास्त्री संगीत की शिक्षा ले रहे हैं। जौ अपने में एक गोरव की बात है । राहुल ने अपने रंसीले गीतों व सुरीली अवाज से प्रवासी उत्तराखण्डी समाज द्वारा भब्य सांस्कृतिक कार्यक्रमों में गहरी पेंठ बनाई है।
राहुल द्वारा गाया उत्तराखण्ड के पलायन पर गीत गाकर उत्तराखण्ड की माटी का दर्द अपने स्वरों से बया किया । जिसको लोगों ने यूटयूब के माध्यम से देश विदेश में खूब सहरा गया। इसगीत को लगभग ढेढ लाख लोगों ने यू टयूब के माध्यम से देखा , राहुल ने इस गीत में जो लोग अपने गाँव मुल्क छोडकर अपनी माटी को भुलकर हमेशा के लिए प्रवासी बन गये । गीत के माध्यम से राहुल ने उन लोगों का आहवान किया की ( चला उत्तराखण्डी भाईयों अपणा मुल्क लोटी जोला) जब कोई इस गीत को सुनता तो उसके मन में अपने गाँव लॉने का ख्याल आता और वह अपने आंसू थामने से भी नहीं थाम पाता गीत में सम्पूर्ण उत्तराखण्ड की आलोकिक सुन्दरता का वर्णन किया गया । छोटी उम्र के बडे उस्ताद राहुल जब मंच पर अपनी प्रस्तुती देते तो पुरा पंडाल तालियों की गड गडाट से गुंज उठता। मायानगरी में उत्तराखण्ड प्रवासियों द्वारा कोई भी कार्यक्रम हो लगभग सभी कार्यक्रमों में राहुल की उपस्थिति अनिवार्य होती है , हो भी क्यों नहीं जिस कार्यक्रम राहुल भागीदारी होती उस कार्यक्रम की रोनक ही कुछ अलग होती । राहुल कहते हैं की मेरे प्रेणा स्रोत्र किशोर कुमार है जिन्के गीतों को सुनकर मेंने संगीत के क्षेत्र में पदार्पण किया जिनकी गीतों सुनकर आज मैने अपने छोटे से सफर की सुरुआत की । राहुल की जितनी अच्छी पकड हिन्दी भाषा पर है उतनी ही पकड़ अपनी उत्तराखण्डी बोली भाषा पर भी है। उनका कहना है की इंसान कितना भी बडा बन जाय वह देश विदेश कहिं भी रहे उसे अपनी बोली भाषा को नहीं भुलना चाहिए । कहते हैं की बच्चों को जैसे संस्कार दिए जाएं जैसा माहोल हो बच्चे उसी माहोल में ढलते। एसा ही उदाहरण है राहुल की छोटी बहिन पुजा राहुल की गायिकी से प्रेरित होकर । मात्र 5 साल की पुजा जिस उम्र में बच्चों को ठिक से बोलना भी नहीं आता । पर पुजा अपनी गायिकी से उत्तराखण्डी मंचों से अपनी गायकी से जहां एक तरफ अपनी बोली भाषा को संवारने का कार्यकर रहे हैं वह भी उस समय में जब युवा अपनी भाषा व जडों से दूर जारहे हैं ,वहीं दौनों भाइयों की यह जौडी अपनी माँ बाप के नाम के साथ देवभूमि का गोरव का परचम मायानगरी में लहरा रहे हैं । राहुल के युटयूब चैनल से सुने गीतों से लगता की राहुल गायकी के क्षेत्र में गायिकी की नई ईबारत लिखेगा।