गोली जो आज उसकी हत्या के लिये चली है शायद एक क्रांति के लिये चली होती

आप कहते हैं वे वामी थी अगर एक वामी की भूमिका के साथ भी गौरी शंकर ने न्याय किया होता तो वो गोली जो आज उसकी हत्या के लिये चली है शायद एक क्रांति के लिये चली होती …भारतीय कोम्यूनिस्टो हत्यारा वो नही जो हत्या कर गया.. ..हत्यारे तुम सब हो ..तुम सब ने मिल कर हत्या कर दी भारतीय क्रांति की हर सँभावना की ..सिर्फ अपने मजे के लिये..
-एक विचारक चंद्रेश योगी
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गौरी, कलबुर्गी, दाभोलकर बनाम कांग्रेस राज
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1- हत्या- वाम कार्यकर्ता गौरी लंकेश की
तारीख- 5 सितंबर 2017
राज्य- कर्नाटक
सीएम- सिद्धरमैया
सरकार- कांग्रेस की

2.- हत्या- वाम विचारक, शिक्षाविद एमएम कलबुर्गी की
तारीख- 30 अगस्त 2015
राज्य- कर्नाटक
सीएम- सिद्धरमैया
सरकार- कांग्रेस की

3.- हत्या- वाम विचारक-सामाजिक कार्यकर्ता नरेंद्र दाभोलकर की
तारीख – 20 अगस्त 2013
राज्य- महाराष्ट्र
सीएम- पृथ्वीराज चौहान
सरकार- कांग्रेस की
…… ये तीन उदाहरण तस्दीक कर रहे हैं कि पिछले कुछेक सालों के दौरान कांग्रेसशासित राज्यों में असहिष्णुता किस कदर बढ़ गई है। किस तरह इन राज्यों में वाम विचारकों-कार्यकर्ताओं का जीवन असुरक्षित हो चुका है। वाम कार्यकर्ता गौरी लंकेश की हत्या अत्यंत निंदनीय है। भले ही वे हिंदू, हिंदुत्व और हिंदुस्तान की धुर विरोधी रही हों, भले ही वे जेएनयू की राष्ट्रद्रोही जमात की प्रबल समर्थक रही हों और भले ही उनकी वैचारिक-राजनीतिक प्रतिबद्धता कुछ भी रही हो, मगर किसी को भी किसी का जीवन लेने का अधिकार नहीं हो सकता। उनकी हत्या करने वाले अपराधियों को तत्काल जेल की सलाखों के पीछे ही नहीं, बल्कि फांसी के तख्ते तक पहुंचाना कर्नाटक और केंद्र, दोनों ही सरकारों की जिम्मेदारी है।
पिछले डेढ़-दो सालों के दौरान बिहार, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में जान गंवाने वाले आधा दर्जन से अधिक पत्रकारों की हत्या पर खामोशी ओढ़े रखने वाले रवीश-ओम थानवी जैसे पत्रकारों की जमात, जेएनयू के राष्ट्रद्रोहियों के समर्थन में पुरस्कार लौटाने वाले साहित्यकारों के गिरोह, उनके साथ जुबानी जुगलबंदी करते हुए असहिष्णुता का राग अलापने वाले किरण-आमिरखान जैसे बॉलीवुडियों और नेताओं की जमात को क्या अब कर्नाटक में बढ़ती असहिष्णुता और हमलों के लिए वहां की कांग्रेस सरकार को बर्खास्त करने के लिए आंदोलन नहीं करना चाहिए….। मगर नहीं, ये सब कोसेंगे अब भी संघ को……हिंदुत्व को….हिंदुस्तान को।
-वरिष्ठ पत्रकार जितेन्द्र अंथवाल

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