श्री बद्रीनाथ जी की आरती के रचयिता की असल सच्चाई जानिए

श्री बद्रीनाथ जी की आरती के रचयिता की असल सच्चाई
भारत के चारों धामों में से एक ज्योतिर्मठ पीठ के आराध्य देव भगवान श्री बद्रीनाथ जी की पावन आरती “पवन मन्द सुगन्ध शीतल, हेम मन्दिर शोभितम” इन दिनों चर्चा का विषय बनी हुई है कारण कुछ और नहीं बल्कि आरती के रचयिता को लेकर हुए नये दावे से जुड़ा हुआ है क्योंकि कई वर्षों से हम अक्सर यह पढ़ते थे कि बद्रीनाथ जी की आरती के लेखक नन्दप्रयाग निवासी बदरुद्दीन शाह हैं। जिनके द्वारा 1865 में आरती रचित बताई जाती थी।
लेकिन अगस्त2018 के माह के अन्त में यह चर्चा होनी शुरु हुई कि आरती रुद्रप्रयाग जिले के रचयिता सतेराखाल-स्यूपूरी के बिरजोणा तोक के रहने वाले स्व.धन सिंह बर्त्वाल हैं। जिनके द्वारा संवत् 1938 (सन 1881) में यह आरती लिखी गयी। जो कि तत्कालीन समय के मालगुजार थे। जिसकी पाण्डुलिपि उनके पड़पौते महेन्द्र सिंह बर्त्वाल को कुछ वर्ष पहले प्राप्त हुई। जिसका उन्होने बारीकी से अध्ययन किया और पाया कि पाण्डुलिपि में जो आरती लिखी गयी है वह आरती वर्तमान आरती से 4 पद अधिक है, ज्ञात हो वर्तमान में गायी जाने वाली आरती में 7पद हैं और पाण्डुलिपि में 11पद हैं और वर्तमान में गायी जाने वाली आरती का पहला पद “पवन मंद सुगन्ध शीतल” धन सिंह बर्त्वाल जी द्वारा रचित आरती का पांचवा पद है। जबकि पहला पद “अगम पंथ अपार गमिता, ब्रहम नार्द जी सोवितम, बद्रीनाथ जी के हिमाल जल थल निर्मल मान सूरीवूरं” है। और वर्तमान आरती के शब्दों को परिष्कृत रुप में लिखा गया है और पदों व पंक्तियों को संयोजित करके देश व दुनिया को बताया गया है कि वर्तमान में गायी जाने वाली आरती ही मूल आरती है लेकिन जब मूल आरती को एक एक शब्द हमने पढ़ा तो पता चला कि पवन शब्द को पौन लिखा गया है ठीक उसी प्रकार से कौतुक को कौथिग….इसी प्रकार अन्य शब्दों को भी परिष्कृत रुप में लिखा गया है। पाण्डुलिपि के अन्त में स्पष्ट  लिखा गया है कि इस आरती को संवत1938(सन् 1881) में माघ मास के 10गते को धन सिंह बर्त्वाल ग्राम बिरजोणा पट्टी तल्लानागपुर द्वारा लिखा गया है। और यह भी स्पष्ट है कि दस्तखत धन सिंह बर्त्वाल का है।
जिससे साफ जाहिर होता है कि पाण्डुलिपि137 वर्ष पुरानी है और जिसमें भगवान श्री बद्री विशाल जी की स्तुति है।
जब महेन्द्र सिंह बर्त्वाल जी द्वारा इस स्तुति का अध्ययन किया गया तो उनके द्वारा समय समय पर आरती को देश व दुनिया के सामने लाने का प्रयास किया गया लेकिन कुछ न कुछ बाधाएं उनके मार्ग में आती गई। 
लेकिन जब मुझे (गम्भीर सिंह बिष्ट) इस महत्वपूर्ण विषय की जानकारी प्राप्त हुई तब विषय के धर्म, इतिहास व संस्कृति व मेरे क्षेत्र से जड़े होने के कारण मैंने व श्री महेन्द्र सिंह बर्त्वाल जी के द्वारा मूल आरती को पहचान दिलाने के लिये संयुक्त मिशन के रुप में दिन रात कार्य किया गया। फिर चाहे सोशल मीडिया हो चाहे प्रिंट व इलेक्ट्रानिक मीडिया सभी माध्यमों से इस आरती को लेकर चर्चा का एक दौर शुरु हो गया। तब जिले से लेकर प्रदेश, राष्ट्रीय से लेकर अन्तराष्ट्रीय स्तर तक आमजनमानस में आरती की सत्यता को लेकर बहस शुरु हो गयी। 
जिसमें जनता के मन में सवाल था कि 1881 में लिखी हुई आरती आज तक देश व दुनिया के सामने क्यों नहीं आयी, प्रश्न स्वाभाविक था, कारण भी स्पष्ट था श्री महेन्द्र सिंह बर्त्वाल को सन् 2000 में अपने पुराने घर में रखे पिठाले जो कि मृग की छाल से बना हुआ था उसके अन्दर प्राप्त हुई। पहले कुछ समय तक लगा कि मालगुजारी के दस्तावेज हैं लेकिन महेन्द्र सिंह बर्त्वाल जी की साहित्य व आध्यात्मिक रुचि होने के कारण उनके द्वारा अध्ययन किया तो पाया कि यह पाण्डुलिपि में उक्त लेख श्री बद्री विशाल जी की आरती से मिलता जुलता है फिर वहीं से पाण्डुलिपि का बारीकी से प्रत्येक शब्द का अध्ययन करना शुरु हो गया। लेकिन वो भी कई वर्षों से सुनते आ रहे थे कि आरती किसी बदरुद्दीन ने लिखी है तो फिर एकाएक कैसे इस बात को दुनिया के सामने लाया जाय कि आरती के लेखक उनके पड़दादा हैं और उनके द्वारा अन्य स्त्रोतों से पता लगाया गया कि बदरुद्दीन द्वारा बतायी जा रही आरती का कोई पुख्ता प्रमाण नहीं है फिर उनके द्वारा 2013 में भी अखबारों में बद्रीनाथ आरती के रचनाकार की नयी जानकारी को लेकर  समाचार प्रकाशित हुआ लेकिन यह खबर सिर्फ अखबार के पन्नों तक सीमित रह गयी।
भगवान श्री बद्री विशाल जी के कपाट के खुलने के समय व अन्य अवसरों पर कुछ लोगों के द्वारा इस बात को उठाया जाता था कि वर्तमान आरती साम्प्रदायिक सौहार्द की एक बड़ी मिशाल है और इसे ही देश व दुनिया के सामने बिना जाँच पड़ताल के परोसा गया और आमजन में भी यही बात घर कर गयी थी कि आरती को किसी मुस्लिम बदरुद्दीन ने लिखा है और इसको लेकर कई तर्क भी दिये जाते थे लेकिन अब जब नये तथ्य सामने आये और सोशल मीडिया के माध्यम से दुनिया को बताया गया कि आरती की मूल पांडुलिपि यदि एकमात्र है तो वह स्व. धन सिंह बर्त्वाल जी की है। और उसके बाद बड़े बड़े मीडिया हाऊस ने भी इस महत्वपूर्ण खबर को हाथों हाथ लिया और तब देश और दुनिया के सामने आरती के रचनाकार की सच्चाई को लेकर बहस का दौर शुरु हो गया।
इतिहास व संस्कृति से जुड़े इस बेहद ही सन्जीदा विषय पर यूसैक के निदेशक डा एमपी एस बिष्ट ने भी जब पाण्डुलिपि का अध्ययन किया तो पाया कि वास्तव में धन सिंह बर्त्वाल के द्वारा लिखित आरती ही मूल आरती है और यूसैक के द्वारा भी इस आरती की सत्यता पर मुहर लगा दी गयी। इसी क्रम में जिलाधिकारी रुद्रप्रयाग श्री मंगेश घिल्डियाल के द्वारा भी पांडुलिपि का अवलोकन करने के बाद इसे इतिहास की अमूल्य धरोहर बताया गया। 
1881 में लिखित आरती को राज्य व देश दुनिया में जनसमर्थन मिलता देख श्री बद्री केदार मन्दिर समिति के मुख्य कार्याधिकारी श्री बी डी सिंह जी, वेदपाठी, बद्रीनाथ जी के मूल पण्डित जी के द्वारा जिलाधिकारी रुद्रप्रयाग श्री मंगेश घिल्डियाल जी व यूसैक के निदेशक प्रो. एमपी एस बिष्ट जी की गरिमामय उपस्थिति में स्व. धन सिंह बर्त्वाल जी के पैतृक घर पर क्षेत्रीय लोगों के बीच वैदिक मन्त्रोच्चार के साथ पांडुलिपि का तिलक व पूजन करते हुए समिति द्वारा अंगीकृत कर दिया गया गया और श्री महेंद्र सिंह बर्त्वाल को श्री बद्री विशाल जी का अंग वस्त्र भेंट कर सम्मानित किया गया। उसके बाद वर्षों से आमजनमानस में आरती के रचनाकार की असल सत्यता देश व दुनिया के सामने आयी और अटकलों पर भी विराम लग गया।
ऐसा नहीं कि इस अभियान में दिक्कते सामने नहीं आयी क्योंकि बड़े बड़े मीडिया हाउस के द्वारा भी इससे पहले आरती के रचनाकार बदरुद्दीन शाह बताया गया। और इस बात को साबित करने के लिये जो तर्क दिये गये थे वे सभी तथ्यहीन, किवदन्तियों के आधार पर तैयार किये गये थे लेकिन जब इसकी पड़ताल गहराई से की गयी तो स्पष्ट हो गया कि कुछ जिम्मेदार लोगों के द्वारा बदरुद्दीन को बिना जांच पड़ताल के महिमामन्डित किया गया और देश व दुनिया के लोगों में झूठ को लगातार प्रचारित व प्रसारित किया गया।
हम सभी इस बात से वाकिफ हैं कि हिन्दुस्तान के इतिहास को समय समय पर कुछ धर्म, संस्कृति व राष्ट्रविरोधी तत्वों के द्वारा तोड़ मरोड़कार पेश किया गया और देश की जनता को भ्रमित किया गया जिसके असंख्य उदाहरण हमारे समक्ष मौजूद हैं इसी कड़ी में चार धामों में से एक भगवान श्री बद्री विशाल जी की आरती के लेखक की सच्चाई 137वर्ष के बाद देश व दुनिया को पता चली है कि आरती के रचनाकार कोई और नहीं बल्कि तत्कालीन धर्मपरायण मालगुजार स्व. धन सिंह बर्त्वाल हैं।
लेखक
गम्भीर सिंह बिष्ट सामाजिक कार्यकर्ता हैं और पाण्डुलिपि को देश व दुनिया के सामने लाने में पांडुलिपि संरक्षक श्री महेंद्र सिंह बर्त्वाल जी के मुख्य सहयोगी हैं।

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