उत्तराखंड में हर्बल खेती की शुरुवात

उत्तराखंड में 40 हजार किसानों ने परंपरागत खेती को छोड़ कर सगंध और जड़ी-बूटी की खेती को अपनाया है। इससे वर्तमान में प्रदेश में एरोमा और हर्बल का 120 करोड़ रुपये का कारोबार हो गया है। अब प्रदेश सरकार का बंजर भूमि पर एरोमा व जड़ी-बूटी का कृषिकरण करने पर फोकस है। इससे लिए किसानों को प्रोत्साहित किया जा रहा है। सरकार का मानना है कि बंदरों और जंगली जानवरों की समस्या को देखते हुए परंपरागत खेती में बदलाव करने की जरूरत है। ताकि किसानों की आमदनी बढ़ सके।

पिछले कुछ सालों में सरकार को एरोमा और जड़ी-बूटी के कृषिकरण में सकारात्मक परिणाम मिले हैं। जिससे अब सरकार ने सगंध और जड़ी बूटी खेती को बढ़ावा देने पर फोकस किया है। सगंध और हर्बल कृषि उत्पाद को मार्केटिंग के लिए सरकार ने एमएसएमई नीति में एरोमा इंडस्ट्री लगाने के लिए अन्य उद्योगों से ज्यादा वित्तीय प्रोत्साहन का प्रावधान किया है। प्रदेश में एरोमा उद्योग लगने से सगंध और जड़ी-बूटी की खेती करने वाले किसानों को बाजार मिल सकेगा।

देहरादून जनपद के चकराता, कालसी, सहसपुर, हरिद्वार जनपद के भगवानपुर, खानपुर, नारसन, पौड़ी के कोट, पावौ, जयहरीखाल, कल्जीखाल, नैनीताल जनपद के ओखलकांडा, धारी, वेतालघाट, रामनगर, कोटबाग, हल्द्वानी व रामगढ़ विकासखंड में लेमनग्रास, डेमस्क गुलाब, कैमोमिल, जापानी मिंट, तेजपात समेत अन्य प्रजाति का कृषिकरण किया जा रहा है। वहीं, जड़ी-बूटी के कृषिकरण के लिए 30 प्रजातियों का चयन किया गया है। जिसमें हिमालयी क्षेत्रों में कूठ, कुटकी, बड़ी इलायची, जम्बू, गंधरायण, अतीस और मैदानी क्षेत्रों में सर्पगंधा, सतावर का उत्पादन किया जा रहा है।

सगंध और जड़ी-बूटी की खेती को बढ़ावा देने के साथ सरकार मार्केटिंग का प्रावधान कर रही है। पारंपरिक फसलों की खेती को बंदर और जंगली जानवरों के नुकसान पहुंचाने से किसानों को आर्थिक नुकसान होता है। इस समस्या का सबसे अच्छा विकल्प सगंध व हर्बल खेती का है।

 

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *