-‘भाषा संस्कृति साहित्य कु प्रश्न अर नैलचामी ओडाधार-देखा पुरु लेख

–‘भाषा संस्कृति साहित्य कु प्रश्न अर नैलचामी ओडाधार’—-
घनसाली ब्लाॅक नैलचामी पट्टी, मा कुळै- बांज डाळयू का छैल ओडाधार मु, गढकवि जीवानन्द श्रीयाल अर हिमवंत कवि चंद्रकुंवर बर्त्वाल तै समर्पित कवि सम्मेलनों आयोजन कर्ये गे।
सोशल साइट पर ‘सदाबहार समूह’ का मास्टरों, अर रचनाशील मनख्यूं  की एक सदाबहार शुरुआत हवे।


सोशल साइट पर जख हम, सुदि अपडुपन ख्वोजणा छिन, फ्रेंडलिस्ट की सूची मा हजारों नौं जोडणा, बड़ा बड़ा ग्यानी-ध्यानी रैबार भ्येजी, धन्य छिन होंणा!  तखि इंटरनेट की ईं दुनिया बटि ही उपज्या सदाबहार समूह का सदस्यों कु ओडाधार जन धार मा, द्वी जनपदों तै, बिना संसाधनों, बिना अर्थ  जोडण की पहल मिशाल ही ना, मशाल भी च !   जैकु उजाळु जरूर नयु सुबेर ल्ये ओलु।


विजय प्रकाश रतूडी जी जन कर्मठ, मैनती अर रचनाशील  मयाळा मनखी तन-मन अर धन से आसपास का समाज तै कवि सम्मेलन मा जोडणूं रै तखि सदाबहार का रचनाशील मनख्यूं तै यक्क जगा कठ्ठा कनौ मंच भी सजोणू रै। माटी थाति से यन चिपक्या कि सैराऽ कार्यक्रम मा कुर्सी दौड़ छोड़ी, भ्वीं बैठया रैन।
कार्यक्रम मा टीरी, रूद्रप्रयाग की सीमा लंघ्ये कै साहित्यकार ओडाधार गुंसाईं भवन मु कठ्ठा  वैन, अर ठिक साढ़े दस बजि कार्यक्रमे जगा हाथ जुडै अर मेल मुलाकात  शुरु हवे। नौं सूणी सबि एक-हक्का तै, जंण्णा-पछण्णा छा, साहित्यिक कुटुम्बदारि तै जोडण अर मिलौण कु काम, भैजी गिरीश बडोनी जी कना छा।
एक तरफ तौंकि जन्म भूमि, टीरी- घनशाली, त हैंकि तरफा, कर्मभूमि जखोली-रूद्रप्रयाग का सदस्य छा।
ग्राम प्रधान चकरेडा सोना देवी जी की अध्यक्षता, अर सोना देवी क्षेत्र पंचैत सदस्य, की मैमानवाजी मा,  बलवीर गुंसाई जी, मंत्री प्रसाद बडोनी अर रूकम सिंह कैंतुरा जी कार्यक्रम संयोजक छा।
चिरपरिचित शैली दगडि लगभग पच्चीस से तीस कवियों तै मंच पर न्यूत्ये गे, आश्चर्य भी कि तीन घंटा मा ही सबूतै यथोचित मंच दीक गिरीश बडोनी जी न अपणि प्रतिभा कु भी परिचै दीनी।
मधुरवादिनी तिवारी जी कु छत्रछैल स्नेह , सबि कवियों तै ऊर्जा , जोश द्योणू रे, तखि कविता भट्ट, नरेंद्र गुंजन, अर रजनीकांत मैठाणी  की मयाळी भौंण अर रचना संगीतमय सम्मेलन कि तरफा लिकरी गे।
नंदन राणा की बाबा रचना  अर बेलीराम कंसवाल की घुघती कविता संवेदना जगे गै।
अनिल उनियाल कु ‘हिमवंत कवि होला’ अर सुनील उनियाल का गढवाली कविता मा नया प्रयोग रंग जमे गैन।
हरीश बडोनी कु उत्तराखंड गीत, अर अश्विनी गौड की कविता, त चाय औण का बाद भी दर्शकों तै मंच से जोडदि गे।
अनिल रतूडी, साहब सिंह, अर मनोज रमोला कि प्रस्तुति भी खूब शानदार रे।
गिरीश बडोनी जी कु उत्तराखंड गांधी पर ‘मैनू दिसंबर- तारीख चौबीस’ की धुन पर मंच दगडि सैरु हाॅल झूमण बैठी, तखि  मिली  रौथाण बागडी कि कविता  ‘बेटी चाहे बस जन्म हो जाए’  सामाजिक विषमता पर सोचणो मजबूर करि गे।
प्रदीप भारती, विक्की शाह, अरविंद प्रकृति अर चौधरी की भलि रचना दगडि  राउमावि पाला कुराली बटि आंई वंदना राणा, प्रीति, रविना अर श्वेता की रचना से नै छवाळि कु भी ईं दिशा मा औंण कु सबि साहित्यकारुन अर दर्शकोंन खूब स्वागत करि।
भैजी गिरीश बडोनी  की हिन्दी अर अंग्रेजी का बीच धाकड़ गढवाली संचालन कु सबि खूब तारीफ कर्दि रैगिन।
विजय रतूडी जी की कविता स्टैल अर हाव-भावन जख हैंसि रौंकि नि सकिन, तखि सबि कवियों, शब्द माळा मा गूंथी, स्वाणी लैन बणै गैन सि, अर ताळयू गडगडाट मा,
सबुन रतूडी जी की ईं पहल कु स्वागत दगडि, धन्यवाद भी करि।
लैंणी हिंदों बटि हृदयराम अंथवाल, चंडीप्रसाद तिवारी, घुत्तू बटिन राजेंद्र चौहान समेत कै दर्शक साक्षात गवाह बणिन ओडाधार सम्मेलन का।
हाँ अभि लोग कवि सम्मेलनों कि गेरै संवेदना नि समझणा पर धीरे धीरे भाषा साहित्य संस्कृति की यन पहलों दगडि जरूर जुडणै कोशिश कना छिन।
वाकई यनि छोटि-छोटि पहल, अपडा-अपडा स्तर पर हम सबि करीतै अपडि भाषा साहित्य संस्कृति तै चुळाख्यूं पौंछै सकदा।
भाषा साहित्य संस्कृति कु प्रश्न  हमारि विरासत दगडि स्वाभिमान कु भि प्रश्न च, विजय रतूडी जी  दगडि सबि सुधि-गुणि सदस्यों का ये प्रयास तै भौत भौत बधै छिन।
भौत भौत प्रणाम, धार ओर-प्वोर जंत-ज्वोड कर्दा सबि भाषा पिरेमी, साहित्यिक कुटुम्बदारि अर दर्शक श्रोताओं तै———
——–अश्विनी गौड दणकोट, रूद्रप्रयाग बटि—–

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