निःसंतान निरास न हो इस मंदिर में होती है मुराद पूरी

दत्तात्रेय जयंती के अवसर पर मंडल गोपेश्वर धाटी के में मनाया जाने वाला मेला अनुसूईया मेला 2 और 3 दिसंबर को धूम-धाम से मनाया जायेगा। मेले की जानकारी देते हुए अनुसूईया मंदिर समिति के अध्यक्ष भजन सिंह झिंकवाण ने बताया कि इस बार भी हर साल की तरह मंडल घाटी में मनाये जाने वाला अनुसूईया मेला को धूम-धाम व हर्षोउल्लास से मनाया जायेगा।समिति सभी भक्तों का मेले में सादर आमंत्रित करती है। मेले का आयोजन मंडल धाटी के अन्र्तगत आने वाले नौ गांव के सहयोग से किया जाता है।

गौरतलब है कि सदियों से यह मेला हर साल भगवान दत्तात्रेय के जन्म उत्सव के अवसर पर मनाया जाता है। जिसमें पूरे भारतवर्ष समेत विदेशों से भी कई श्रृधालू पधारते है। वरदायनी सती सिरोमणी अनुसूईया माता से निःसंतान माता-पिता संतान का वर लेकर जाते है और संतान की प्राप्ति करते है। जिन्हें मंदिर में कुछ समय गुजारना होता है और सपना होने पर स्नान कर माता के दर्शन कर यहां से विदा लेना होता है। अभी तक हजारों लोगों को यहां से माता बरदान दे चुकी है जो आज भी आस्था और भक्ति का जीता जागता उदाहरण है।

लोक मान्यताओं के अनुसार त्रेतायुग में अत्रिमुनि की पत्नी अनुसूईया माता के सतीत्व का यश तीनों लोकों में फैल जाने के बाद देवलोक की तीनों देवीयांे सरस्वती,लक्ष्मी,पार्वती ने अपने पतियों (bharma, बिष्णु,महेश)को मृत्युलोक में अनुसूईया माता के सतित्व की परीक्षा के लिए भेजा तो उन्होनें साधु भेष में माता से निवस्त्र भोजन के लिए कहा तब माता ने उन्हें अपनी शक्ति से बालक रूप बना दिया और अपना स्तन पान कराया। बाद में तीनों देवीयों अपने पतियों की तलास में अनुसुईया आश्रम में पंहुच कर वापस लेने आई तो तीनों देवों ने माता से वरदान मांगने को कहा तब माता अनुसूईया ने उन्हें एक दत्तक पुत्र देने की बात कही।

तब से आज तक हर वर्ष दत्तात्रेय जी के जन्मदिवस के उपल्क्ष में यह उत्सव मनाया जाता रहा है। जो बाद में एक मेले के रूप में परिवतित हो गया।
अनुसूईया मंदिर से लगभग 3 किलोंमीटर की दूर पर अत्रिमुनि के आश्रम जहां अदभूत साहासिक पर्यटन के साथ तीर्थाटन के दर्शन होते है। यहां पर अत्रि मुनि की गुफा तक पंहुचने के लिए लोहे की चैन से चडना होता है। और पेट के सहारे पत्थर के अंदर से सरकना होता है। विश्व का एक मात्र जलप्रपात जिसे अमृत धारा के नाम से जाना जाता है की परिक्रमा कर वापस अपने स्थान पर आना होता है।इस अद्भूत झरने के दर्शन के से मन शांत हो जाता है।पांच देव डोलियों के अद्भूत और मनमोहक दृश्य को देखने के लिए देश व विदेश के लोग यह हर साल आते है। कड़कती सर्दी के मध्य रातभर चलने वाले इस मेले में विभिन्न सांस्कृतिक दलों द्वारा लोगों का भरपूर मनोंरंजन किया जाता है। जिसमें उत्तराखंड के लोक कलाकार अपनी प्रस्तुतियों एवं माता के भजनों से लोगांे को मनोरंजन करतें है। साल दर साल भक्तों की बडती भीड़ के मध्य भी मंदिर समिति के द्वारा भक्तों को हर प्रकार की सुविधाओं देने की कोशिस की जाती है। जिसमें विभिन्न सामाजिक संस्थाओं के द्वारा दिन और रात के भण्डारें लगाये जाते है। दूसरे दिन भक्तों को ंदेव डोलियांे के दर्शन और प्रसाद वितरण के बाद परम्परागत और विधि विधान के बाद गन्तव्य स्थान के लिए विदा कर दिया जाता है।
-भानु प्रकाश नेगी

 

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